नमस्कार दोस्तों, हमारा आज का आर्टिकल हिंदी व्याकरण का एक और महत्वपूर्ण अध्याय संधि किसे कहते हैं? संधि की परिभाषा, संधि के भेद (प्रकार) | Sandhi in Hindi से सम्बन्धित है।
संधि के उदाहरण से संबंधित प्रश्न schools के exams के साथ competition exams में भी हमेशा पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हमारा आज का आर्टिकल संधि किसे कहते हैं? संधि की परिभाषा, संधि भेद व उदाहरण है।
Table of Contents
संधि अर्थ | Sandhi Meaning
संधि शब्द सम् + धि के जुड़ने से बना है, जिसका अर्थ होता है मेल।
किसी दो निकटवर्ती वर्णों के आपस में मेल से जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है, वह संधि कहलाता है।
संधि किसे कहते हैं Class 8 | Sandhi Kise kahate hain
जब दो वर्ण पास-पास होते है, तो पहले शब्द के अंतिम वर्ण का दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के साथ मेल होता है, इनके संयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते है।
उदाहरण –
- उद + योग = उदयोग
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- जगत + नाथ = जगन्नाथ
- विद्या +आलय = विद्यालय
संधि की परिभाषा | sandhi ki paribhasha aur uske bhed
दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को संधि कहते हैं।
संधि के भेद (Sandhi Ke Bhed)
संधि तीन प्रकार की होती है – (Sandhi Ke Prakar)
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
1. स्वर संधि (Swar Sandhi)
जब किसी स्वर वर्ण का मेल किसी दूसरे स्वर वर्ण से होता है तो उसे स्वर संधि कहा जाता है।
अर्थात्, दो स्वरों के योग से होने वाले विकार (परिर्वतन) को स्वर संधि कहते हैं।
“अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ” – ये सारे वर्ण, स्वर वर्ण कहे जाते हैं।
स्वर वर्ण + स्वर वर्ण = स्वर संधि
उदाहरण –
- अति + अधिक = अत्यधिक (इ + अ = य)
- कवि + ईश्वर = कवीश्वर (इ + ई = ई)
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)
स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं – (swar sandhi ke bhed Prakar)
- गुण स्वर संधि
- दीर्घ स्वर संधि
- वृद्धि स्वर संधि
- यण् स्वर संधि
- अयादी स्वर संधि
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(1) गुण स्वर संधि (Gun sandhi)
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आए, तो वे विकार से ‘ए’, ‘ओ’ और ’अर्’ हो जाते हैं।
नियम – (gun sandhi ke niyam)
- अ/आ + इ / ई = ए
- अ / आ + उ / ऊ = ओ
- अ/आ + ऋ = अर्
उदाहरण – (gun sandhi ke examples udaharan)
- राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
- गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
- देव +ईश = देवेश
- चन्द्र +उदय = चन्द्रोदय
- महा +उत्स्व = महोत्स्व
(II) दीर्घ स्वर संधि (Dirgh Sandhi)
दो समान स्वरों की संधि, दीर्घ संधि कहलाती है। दो समान स्वर चाहे वो लघु हों या दीर्घ हों, दोनों मिलकर दीर्घ बन जाते हैं।
कहने का तात्पर्य है कि यदि दोनों पदों में ’अ’ ’आ’, ’इ’, ’ई’, ’उ’, ’ऊ’ जैसे वर्ण आये, तो वो दोनों मिलकर ’आ’ ’ई’ या ’ऊ’ बन जाते हैं।
नियम – (Dirgh Sandhi Ke Niyam)
- अ/आ + अ / आ = आ
- इ/ई + इ/ई = ई
- उ/ऊ + उ/ ऊ = ऊ
उदाहरण – (Dirgh sandhi ke examples udaharan)
- गिरि + ईश = गिरीश
- भानु + उदय = भानूदय
- शिव + आलय = शिवालय
- कोण+ अर्क = कोणार्क
- देव + असूर = देवासूर
- कोण + अर्क = कोणार्क
- लज्जा + भाव = लज्जाभाव
- गिरि + ईश = गिरीश
- पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
(III) वृद्धि संधि (Vridhi sandhi)
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए, वर्णों का योग हो, तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ हो जाता है तथा ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ आए, तो दोनों के स्थान में ‘औ’ बन जाता है। इस संधि को वृद्धि संधि कहा जाता है।
नियम – (Vridhi sandhi Ke Niyam)
- अ + ए = ऐ
- आ + ए = ऐ
- अ + ओ = औ
- अ + औ = औ
- आ + ओ = औ
- आ + औ = औ
उदाहरण – (Vridhi sandhi Ke Examples Udhaharan)
- सदा + एव = सदैव
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- एक + एक = एकैक
- वन + औषधि = वनौषधि
- एक + एक = एकैक
- वन + ओषधि = वनौषधि
- महा + औषध = महौषध
(IV) यण् स्वर संधि (Yan sandhi)
यदि ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के साथ कोई भित्र स्वर वर्णों का मेल होता है, तो विकार कुछ इस प्रकार होते हैं – इ-ई का ‘ य् ‘, ‘उ-ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता हैं।
नियम – (Yan sandhi Ke Niyam)
- इ + अ = य्
- ई + अ = य्
- उ + अ = व्
- ऊ + आ = व्
- ऋ + अ = र्
- लृ + आ = ल्
उदाहरण – (Yan sandhi Ke Examples Udhaharan)
- अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
- प्रति + एक = प्रत्येक
- अनु + एषण = अन्वेषण
- सु + आगतम = स्वागतम
- वि + आख्या = व्याख्या
- अनु + आय =अन्वय
- मधु + आलय =मध्वालय
- गुरु + औदार्य =गुवौंदार्य
- पितृ + आदेश=पित्रादेश
(V) अयादी स्वर संधि (Ayadi sandhi)
यदि ‘ए’, ‘ऐ’ ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) ‘ए’ का ‘अय्’, (ख) ‘ऐ’ का ‘आय्’, (ग) ‘ओ’ का ‘अव्’ और (घ) ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है।
नियम – (Ayadi sandhi Ke Niyam)
- ए + अ = अय्
- ऐ + अ = आय्
- ओ + आ = अव्
- औ + अ = आव्
उदाहरण – (Ayadi sandhi ke examples Udhaharan)
- पो + अन = पवन
- धातु + इक = धात्विक
- नै + इका = नायिका
- भो + अन = भवन
- चे + अन = चयन
- नै + अक = नायक
- पौ + अन = पावन
- पौ + अक = पावक
2. व्यंजन संधि (Vyanjan sandhi)
यदि योग होने वाले दो वर्णों में से एक वर्ण व्यंजन हो और दूसरा स्वर अथवा व्यंजन (कोई भी एक हो), तो उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
स्वर + व्यंजन
व्यंजन + स्वर
व्यंजन + व्यंजन
नियम – (Vyanjan sandhi Ke Niyam)
(1) यदि ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है या वह बाद वाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।
जैसे –
- सम् + गम = संगम
- अहम् + कार = अहंकार
(2) दि ‘त्-द्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘त्-द्’ ‘ल्’ में बदल जाते है और ‘न्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘न्’ का अनुनासिक के बाद ‘ल्’ हो जाता है।
जैसे –
- उत् + लास = उल्लास
(3) यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आए, तो ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।
जैसे –
- अच + अन्त = अजन्त
- दिक् + गज = दिग्गज
(4) यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’ के बाद ‘न’ या ‘म’ आये, तो क्, च्, ट्, त्, प अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।
जैसे –
- जगत् + नाथ = जगत्राथ
- षट् + मास = षण्मास
(5) यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्गों के बाद ‘त्’ आए, तो ‘ह’ पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और ‘ह्’ के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण ।
जैसे –
उत् + हार =उद्धार
(6) हस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो, तो ‘छ’ के पहले ‘च्’ जुड़ जाता है । दीर्घ स्वर के बाद ‘छ’ होने पर यह विकल्प से होता है।
जैसे –
- परि + छेद = परिच्छेद
व्यंजन संधि के उदाहरण | Vyanjan sandhi Ke Examples Udhaharan
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- सम् + गम = संगम
- उत् + लास = उल्लास
- सत् + वाणी = सदवाणी
- दिक् + भ्रम = दिगभ्रम
- वाक् + मय = वाड्मय
- द्रष् + ता = द्रष्टा
- सत् + चित् = सच्चित्
- उत् + हार = उद्धार
- परि + छेद = परिच्छेद
- वाक् + जाल = वाग्जाल
- वाक् + ईश = वागीश
- उत् + अय = उदय
- जगत् + ईश = जगदीश
- अच् + अन्त = अजन्त
- दिक् + विजय = दिग्विजय
- सत् + आचार = सदाचार
3. विसर्ग संधि (Visarg sandhi)
वर्णों और शब्दों की ऐसी संधि जिसमें पहले के अंत में विसर्ग (:) ध्वनि होती है तो विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते है।
नियम – (Visarg sandhi Ke Niyam)
(1) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आए और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसन्धि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे –
- मनः + रथ = मनोरथ
- सरः + ज= सरोज
- मनः + भाव = मनोभाव
- सरः + वर = सरोवर
- मनः+ योग = मनोयोग
(2) यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ष् हो जाता है।
जैसे –
- निः + फल = निष्फल
- दु: + कर = दुष्कर
(3) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे क, ख, प, फ मे से कोड वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है।
जैसे –
- पयः + पान = पय:पान
- प्रातः + काल = प्रातःकाल
(5) यदि ‘इ’ – ‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आये, तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ‘ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है।
जैसे –
- निः + रस = नीरस
- निः + रोग = नीरोग
(6) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है।
जैसे –
- दु: + गन्ध = दुर्गन्ध
- निः + गु = निर्गुण निः + झर = • निर्झर
- दुः+ नीति = दुर्नीति निः + मल = निर्मल
(7) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ-श’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट-ठ-ष’ हो तो ‘ष्’ और ‘त-थ-स’ हो तो ‘स्’ हो जाता है।
जैसे –
- निः + तार = निस्तार
- निः + शेष = निश्शेष
- निः + छल = निश्छल
(8) यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओ’ हो जाता है और विसर्ग के बादवाले ‘अ’ का लोप होता है।
जैसे –
- प्रथमः + अध्याय = प्रथमोध्याय
- यशः + अभिलाषी = यशोभिलाषी
विसर्ग संधि के उदाहरण | Visarg sandhi Ke Examples Udhaharan
- प्रातः + काल = प्रातःकाल
- मनः + भाव = मनोभाव
- निः + पाप = निष्पाप
- निः + रव = नीरव
- निः + विकार = निर्विकार
- निः + चय = निश्रय
- यशः + अभिलाषा = यशोभिलाषा
- मनः + ज = मनोज
- सरः + वर = सरोवर
- अधः + गामी = अधोगामी
- परः + अक्ष = परोक्ष
- वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
- अन्तः + आत्मा = अन्तरात्मा
- आयुः + वेद = आयुर्वेद
- चतुः + आनन = चतुरानन
- चतुः + मुख = चतुर्मुख
- धनुः + धर = धनुर्धर
- निः + रोग = नीरोग
- यजुः + वेद = यजुर्वेद
संधि विच्छेद किसे कहते हैं?
विच्छेद का अर्थ होता है, पृथक करना।
जब दो शब्दों के मेल से बने शब्द को अलग अलग किया जाता है, तो वह संधि विच्छेद कहलाता है।
अर्थात्, संधि शब्दों को अलग अलग करने को संधि विच्छेद कहते हैं।
जैसे –
- हिमालय = हिम + आलय
- महर्षि = महा + ऋषि
- लोकोक्ति = लोक + उक्ति
- महाशय = महा+आशय
Sandhi Viched In Hindi (महत्वपूर्ण शब्द एवं उनके सन्धि-विच्छेद)
- उद्धत = उत् + हत (व्यंजन सन्धि)
- कंठोष्ठ्य = कंठ + ओष्ठ्य (गुण सन्धि)
- अन्वय = अनु + अय (यण् सन्धि)
- किंचित् = किम् + चित् (व्यंजन सन्धि)
- अन्तर्राष्ट्रीय = अन्तः + राष्ट्रीय (विसर्ग सन्धि)
- अध्याय = अधि + आय (यण् सन्धि)
- अभ्यस्त = अभि + अस्त (यण् सन्धि)
- आध्यात्मिक = आधि + आत्मिक (यण् सन्धि)
- नयन = ने + अन (अयादि सन्धि)
- नवोढ़ा = नव + ऊढ़ा (गुण सन्धि)
- इत्यादि = इति + आदि (यण् सन्धि)
- उद्धरण = उत् + हरण (व्यंजन सन्धि)
- उल्लंघन = उत् + लंघन (व्यंजन सन्धि)
- निष्फल = निः + फल (विसर्ग सन्धि)
- दृष्टि = दृष् + ति (व्यंजन सन्धि)
- दुश्शासन = दुः + शासन (विसर्ग सन्धि)
- निर्दोष = निः + दोष (विसर्ग सन्धि)
- घनानंद = घन + आनन्द (दीर्घ सन्धि)
- एकैक = एक + एक (वृद्धि सन्धि)
- अधीश्वर = अधि + ईश्वर (दीर्घ सन्धि)
- अभ्यागत = अभि + आगत (यण् सन्धि)
- उच्छ्वास = उत् + श्वास (व्यंजन सन्धि)
- जगद्बन्धु = जगत् + बन्धु (व्यंजन सन्धि)
- तपोवन = तपः + वन (विसर्ग सन्धि)
- अब्ज = अप् + ज (व्यंजन सन्धि)
- दृष्टान्त = दृष्ट + अंत (दीर्घ सन्धि)
- दुर्बल = दुः + बल (विसर्ग सन्धि)
- तल्लय = तत् + लय (व्यंजन सन्धि)
- नद्यूर्मि = नदी + ऊर्मि (यण् सन्धि)
- चतुरंग = चतुः + अंग (विसर्ग सन्धि)
- जलौघ = जल + ओघ (वृद्धि सन्धि)
- उद्देश्य = उत् + देश्य (व्यंजन सन्धि)
- निर्झर = निः + झर (विसर्ग सन्धि)
- सहोदर = सह + उदर (गुण सन्धि)
- सप्तर्षि = सप्त + ऋषि (गुण सन्धि)
- मतैक्य = मत + ऐक्य (वृद्धि सन्धि)
- भूर्ध्व = भू + ऊर्ध्व (दीर्घ सन्धि)
- शुभेच्छु = शुभ + इच्छु (गुण सन्धि)
- कामायनी = काम + अयनी (दीर्घ सन्धि)
- सत्याग्रह = सत्य + आग्रह (दीर्घ सन्धि)
- रमेश = रमा + ईश (गुण सन्धि)
- यज्ञोपवीत = यज्ञ + उपवीत (गुण सन्धि)
- लोकैषणा = लोक + एषणा (वृद्धि सन्धि)
- स्वैच्छिक = स्व + ऐच्छिक (वृद्धि सन्धि)
- रक्षोपाय = रक्षा + उपाय (गुण सन्धि)
- अत्रौव = अत्रा + एव (वृद्धि सन्धि)
- पऱीक्षा = परि + ईक्षा (दीर्घ सन्धि)
- भाविनी = भौ + ईनी (अयादि सन्धि)
- भूदार = भू + उदार ( दीर्घ सन्धि )
- पित्राादि = पितृ + आदि (यण् सन्धि)
- रजःकण = रजः + कण (विसर्ग सन्धि)
- विन्यास = वि + नि + आस (यण् सन्धि)
- शरच्चंद्र = शरत् + चन्द्र (व्यंजन सन्धि)
- संभव = सम् + भव (व्यंजन सन्धि)
- यथेष्ट = यथा + इष्ट (गुण सन्धि)
- सरोवर = सरः + वर (विसर्ग सन्धि)
- संगठन = सम् + गठन (व्यंजन सन्धि)
- हरेक = हर + एक (गुण सन्धि)
- भावना = भौ + अना (अयादि सन्धि)
- सदिच्छा = सत् + इच्छा (व्यंजन सन्धि)
- जगन्नाथ = जगत् + नाथ (व्यंजन सन्धि)
- ऋग्वेद = ऋक् + वेद (व्यंजन सन्धि)
- उदय = उत् + अय (व्यंजन सन्धि)
- तत्पुरूष = तद् + पुरुष (व्यंजन सन्धि)
- उन्मुख = उद् + मुख (व्यंजन सन्धि)
- सड्.क्रान्ति = सम् + क्रान्ति (व्यंजन सन्धि)
- उन्नयन = उत् + नयन (व्यंजन सन्धि)
- उच्चारण = उत् + चारण (व्यंजन सन्धि)
- सड्.गठन = सम् + गठन ( व्यंजन सन्धि )
- धनंजय = धनम् + जय ( व्यंजन सन्धि)
- जगज्जननी = जगत् + जननी (व्यंजन सन्धि)
- उल्लिखित = उत् + लिखित (व्यंजन सन्धि)
- संयम = सम् + यम (व्यंजन सन्धि)
- संसर्ग = सम् + सर्ग (व्यंजन सन्धि)
- उच्छृंखल = उत् + शृंखल (व्यंजन सन्धि)
- उल्लेख = उद् + लेख (व्यंजन सन्धि)
- पद्धति = पद् + हति (व्यंजन सन्धि)
- समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि (गुण सन्धि)
- हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र (विसर्ग सन्धि)
- मध्वरि = मधु + अरि (यण् सन्धि)
- मात्राानन्द = मातृ + आनन्द ( यण् सन्धि )
- नायक = नै + अक (अयादि सन्धि)
- प्रतिष्ठा = प्रति + स्था (व्यंजन सन्धि)
- पुष्ट = पुष् + त (व्यंजन सन्धि)
- परिणय = परि + नय ( व्यंजन सन्धि )
- निषिद्ध = नि + सिद्ध ( व्यंजन सन्धि )
- अभिषेक = अभि + सेक ( व्यंजन सन्धि )
- निकृष्ट = निकृष् + त (व्यंजन सन्धि)
- अनुच्छेद = अनु + छेद (व्यंजन सन्धि)
- विद्यालय = विद्या + आलय (दीर्घ सन्धि)
- प्रतिच्छाया = प्रति + छाया ( व्यंजन सन्धि
- संस्कर्ता = सम् + कर्ता (व्यंजन सन्धि)
- परिष्कृत = परि + कृत (व्यंजन सन्धि)
- परोक्ष = परः + अक्ष (विसर्ग सन्धि)
- आविर्भाव = आविः + भाव (विसर्ग सन्धि)
- परस्पर = परः + पर (विसर्ग सन्धि)
- नभोमंडल = नभः + मंडल (विसर्ग सन्धि)
- शिरोधार्य = शिरः + धार्य (विसर्ग सन्धि)
- मनोनुकूल = मनः + अनुकूल (विसर्ग सन्धि)
- अधोवस्त्रा = अधः + वस्त्रा (विसर्ग सन्धि)
संधि से अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Sandhi FAQs
वृद्धि संधि के कितने भेद होते हैं?
वृद्धि संधि के भेद नहीं होते हैं। वृद्धि संधि स्वयं स्वर संधि के पाँच भेदों में से एक है।
गुण संधि का उदाहरण कौन है?
गुण संधि का उदाहरण –
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
सूर्य + उदय = सूर्योदय
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
संधि कितने प्रकार की होती हैं?
संधि तीन प्रकार की होती है –
स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
स्वर संधि के कितने भेद हैं?
स्वर संधि के पाँच भेद होते है –
1. गुण स्वर संधि
2. दीर्घ स्वर संधि
3. वृद्धि स्वर संधि
4. यण् स्वर संधि
5. अयादी स्वर संधि
विसर्ग संधि किसे कहते हैं?
वर्णों और शब्दों की ऐसी संधि जिसमें पहले के अंत में विसर्ग (:) लगा होता है और विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते है।
संधि की परिभाषा संस्कृत में?
सम् उपसर्ग पूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” सूत्र से ‘कि’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ शब्द निष्पन्न होता है। वर्ण सन्धान को सन्धि कहते हैं। अर्थात् दो वर्गों के परस्पर के मेल अथवा सन्धान को सन्धि कहा जाता है।
आज आपने क्या सीखा ?
आज के आर्टिकल में हमने संधि किसे कहते हैं? संधि की परिभाषा, संधि के भेद (प्रकार) | Sandhi in Hindi के बारे में जानकारी दी है।
जहां हमने पूरे विस्तार से “Sandhi kise kahate hain” संधि के प्रकार/भेद, संधि के बारे में पढ़ा और समझा है।
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