नमस्कार दोस्तों, हमारा आज का आर्टिकल हिंदी व्याकरण का एक और महत्वपूर्ण अध्याय स्वर और व्यंजन (Swar and Vyanjan) | Vowels and Consonants in Hindi से सम्बन्धित है।
schools के exams के अलावा competition exams में स्वर और व्यंजन के उदाहरण से संबंधित 1 से 2 question हमेशा पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हमारा आज का आर्टिकल स्वर और व्यंजन किसे कहते हैं? स्वर और व्यंजन भेद व उदाहरण है।
Table of Contents
वर्णमाला किसे कहते हैं ?
किसी भी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते हैै।
सरल शब्दों में – वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।
प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है।
जैसे –
हिंदी – अ, आ, क, ख, ग…..
अंग्रेजी – A, B, C, D, E….
जब वर्णमाला का प्रयोग लिखने, पढ़ने और देखने के लिए किया जाता है, तो उसे वर्ण कहते हैं और जब वही वर्णमाला को बोलने और सुनने के लिए प्रयोग किया जाता है तो उसे ध्वनि / स्वर कहते हैं।
उदाहरण के लिए जब मुख से अ, आ, इ, ई और क, ख, ग, घ इत्यादि का उच्चारण किया जाता है, तो ये ‘ध्वनियाँ’ कहलाती हैं। वहीं इनके लिखित रूप को ‘वर्ण’ कहते हैं।
वर्ण के भेद
हिंदी वर्णमाला में वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है –
- स्वर (vowel)
- व्यंजन (Consonant)
(1) स्वर किसे कहते हैं? | Swar In Hindi (vowel)
वे वर्ण जिनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर कहलाता है।
दूसरे शब्दों में – जिन वर्णों का स्वतंत्र उच्चारण किया जा सके या जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा बिना किसी रुकावट के मुख से बाहर निकलती है, वे स्वर कहलाते हैं।
इसके उच्चारण में कंठ एवं तालु का उपयोग होता है, जीभ एवं होठ का नहीं।
हिंदी वर्णमाला में 16 स्वर है –
जैसे – अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ।
स्वर के भेद
स्वर के दो भेद होते है –
- मूल स्वर
- संयुक्त स्वर
(i) मूल स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ
(ii) संयुक्त स्वर – ऐ (अ +ए) और औ (अ+ओ)
मूल स्वर के भेद
मूल स्वर के तीन भेद होते है –
- ह्स्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
(i) ह्रस्व स्वर (Hasv Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहते है।
ह्स्व स्वर चार होते है -अ आ उ ऋ।
‘ऋ’ की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है तथा उच्चारण ‘रि’ की तरह होता है।
(ii) दीर्घ स्वर (Dirgh Swar)
वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
सरल शब्दों में – वे स्वर जिनके उच्चारण में अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।
दीर्घ स्वर सात होते है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
दीर्घ स्वर दो शब्दों के योग से बनते है। जैसे –
- आ = (अ+अ)
- ई = (इ+इ)
- ऊ = (उ+उ)
- ए = (अ+इ)
- ऐ = (अ+ए)
- ओ = (अ+उ)
- औ = (अ+ओ)
(iii) प्लुत स्वर (Plut Swar)
वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय यानी तीन मात्राओं का समय लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं।
सरल शब्दों में – जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे ‘प्लुत’ कहते हैं।
इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है। जैसे- सुनोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम्।
हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे ‘त्रिमात्रिक’ स्वर भी कहते हैं।
अं, अः अयोगवाह कहलाते हैं। वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।
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अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग
हिन्दी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता हैं।
अनुस्वार और विर्सग व्यंजन हैं, जो स्वर के बाद, स्वर से स्वतंत्र आते हैं।
इन चारों के संकेतचिह्न इस प्रकार हैं –
अनुनासिक (ँ)
ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है। जैसे- गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि।
अनुस्वार ( ं)
यह स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन है, जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है। जैसे – अंगूर, अंगद, कंकन।
निरनुनासिक
केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं। जैसे- इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।
विसर्ग ( ः)
अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी व्यवहार है। हिन्दी में अब इसका अभाव होता जा रहा है; किन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है। जैसे- मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि।
(2) व्यंजन किसे कहते हैं? | Vyanjan In Hindi (33 consonants in Hindi)
जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है।
दूसरे शब्दो में – जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता हो या जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा रुकावट के साथ मुँह के बाहर निकलती है, वे व्यंजन कहलाते हैं।
अर्थात्, व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है।
जैसे – क, ग, च, द, न, प, ब, य, ल, स, ह आदि।
‘क’ से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं है। जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प।
हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या 33 है – (33 consonants in Hindi)
मूल व्यंजन –
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
उत्क्षिप्त व्यंजन –
ड़ ढ़
संयुक्ताक्षर व्यंजन –
क्ष त्र ज्ञ श्र
व्यंजनों के प्रकार
व्यंजनों मूलतः तीन प्रकार के होते है –
- स्पर्श व्यंजन
- अन्तःस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन
(1) स्पर्श व्यंजन क्या होता हैं? | Sparsh Vyanjan
स्पर्श का अर्थ होता है – छूना। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।
दूसरे शब्दो में – वे व्यंजन जो कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
इन्हें हम ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है; क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।
स्पर्श व्यंजन की कुल संख्या 25 है। उन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है, और प्रत्येक वर्ग में पाँच व्यंजन हैं –
क वर्ग (कण्ठ का स्पर्श) | क, ख, ग, घ, ङ |
च वर्ग (तालु का स्पर्श) | च, छ, ज, झ, ञ |
ट वर्ग (मूर्धा का स्पर्श) | ट, ठ, ड, ढ, ण |
त वर्ग (दाँतो का स्पर्श) | त, थ, द, ध, न |
प वर्ग (होठों का स्पर्श) | प, फ, ब, भ, म |
(2) अंतस्थ व्यंजन क्या होता हैं? | Antastha Vyanjan
‘अन्तः’ का अर्थ होता है- ‘भीतर’। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।
अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।
ये व्यंजन चार होते है – य, र, ल, व।
इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ कहलाते हैं।
(3) संघर्षी / ऊष्म व्यंजन क्या होता हैं? | Sangharshi / Ushma Vyanjan
उष्म का अर्थ होता है – गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।
ऊष्म = गर्म। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।
उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं।
ये भी चार व्यंजन होते है – श, ष, स, ह।
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है।
उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है –
कंठ्य (गले से) | क, ख, ग, घ, ङ |
तालव्य (कठोर तालु से) | च, छ, ज, झ, ञ, य, श |
मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) | ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष |
दंत्य (दाँतों से) | त, थ, द, ध, न |
वर्त्सय (दाँतों के मूल से) | स, ज, र, ल |
ओष्ठय (दोनों होंठों से) | प, फ, ब, भ, म |
दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) | व, फ |
स्वर तंत्र से | ह |
श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद
उच्चारण में वायुप्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं –
- अल्पप्राण
- महाप्राण
(1) अल्पप्राण
जिनके उच्चारण में श्वास अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ‘हकार’- जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं।
सरल शब्दों में – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।
जैसे- क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म।
अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।
(2) महाप्राण
जिनके उच्चारण में श्वास अधिक मात्रा में निकले और जिनमें ‘हकार’- जैसी ध्वनि विशेष रूप से रहती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं।
सरल शब्दों में – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा अधिक होती है, वे महाप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।
जैसे – ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ और श, ष, स, ह।
संयुक्त व्यंजन क्या होता हैं? | Sanyukt Vyanjan
जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
संयुक्त व्यंजन संख्या में चार हैं –
- क्ष = क् + ष + अ = क्ष
- त्र = त् + र् + अ = त्र
- ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ
- श्र = श् + र् + अ = श्र
संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।
द्वित्व व्यंजन क्या होता हैं?
जब एक व्यंजन का अपने समरूप व्यंजन से मेल होता है, तब वह द्वित्व व्यंजन कहलाता हैं।
जैसे –
- क् + क = पक्का
- च् + च = कच्चा
- म् + म = चम्मच
- त् + त = पत्ता
द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।
संयुक्ताक्षर क्या होता हैं?
जब एक स्वर रहित व्यंजन, अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।
जैसे –
- क् + त = क्त = संयुक्त
- स् + थ = स्थ = स्थान
- स् + व = स्व = स्वाद
- द् + ध = द्ध = शुद्ध
यहाँ दो अलग-अलग व्यंजन मिलकर कोई नया व्यंजन नहीं बनाते।
स्वर और व्यंजन से अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Swar and Vyanjan FAQs
स्वर और व्यंजन की जोड़ी को पढ़ने का सही तरीका क्या है?
स्वर और व्यंजन की जोड़ी को पढ़ने का सही तरीका – प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं है। जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प।
स्वर और व्यंजन को मिलाकर क्या बनता है?
स्वर और व्यंजन को मिलाकर हिंदी वर्णमाला बनती है।
स्वर और व्यंजन को क्या कहते है?
जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख से हवा बिना किसी रुकावट के निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं। और जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख से हवा रुककर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
स्वर और व्यंजन शब्दों का और कहाँ प्रयोग होता है?
स्वर और व्यंजन शब्दों का प्रयोग हिंदी वर्णमाला में होता है। प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है। वर्णों के समूह को ही वर्णमाला कहते हैं और वर्णों को ही दो भागों में बाँटा गया है – स्वर और व्यंजन।
क्ष त्र ज्ञ श्र क्या कहलाते?
ज्ञ, क्ष और त्र हिन्दी के संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
आज आपने क्या सीखा ?
आज के आर्टिकल में हमने स्वर और व्यंजन किसे कहते हैं? स्वर और व्यंजन प्रकार/भेद, (Swar and Vyanjan) | Vowels and Consonants in Hindi के बारे में जानकारी दी है।
जहां हमने पूरे विस्तार से “Swar and Vyanjan kise kahate hain” स्वर और व्यंजन के प्रकार/भेद, स्वर और व्यंजन के बारे में पढ़ा और समझा है।
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